रिमांड शीट में आवेदक का नाम विनोद कुमार बरुआर था, जबकि अदालत के आदेश में उसका नाम विनोद बरुआर बताया. जेल अधीक्षक सिद्धार्थनगर ने केवल इस गलती के कारण 8 महीने तक एक व्यक्ति को अवैध कारावास में रखा.
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जेल अधीक्षक सिद्धार्थनगर राकेश सिंह को तलब किया और फटकार लगाई. साथ ही कहा कि कोर्ट के आदेश के पालन के बाद जेल अधीक्षक कोर्ट में आकर बताएं कि उनके खिलाफ उचित विभागीय जांच की सिफारिश क्यों नहीं की जानी चाहिए. बाद में जेल अधीक्षक कोर्ट में पेश हुए और हलफनामा भी दायर किया, जिसे जस्टिस जे.जे. मुनीर ने स्वीकार कर लिया.
सिद्धार्थ नगर जेल में बंद अभियुक्त की जमानत अर्जी चार सितम्बर 2019 को सत्र न्यायालय ने निरस्त कर दी थी. जिसपर हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की गयी थी लेकिन हाई कोर्ट ने 9 अप्रैल 2020 को जमानत मंजूर कर ली थी. जमानत पर छोड़ने के आदेश में विनोद बरूआर लिखा था और रिमान्ड आदेश में विनोद कुमार बरूआर था. इस पर याची ने आदेश संशोधित करने की अर्जी दाखिल की.
तकनीकी खामी के चलते अभियुक्त को न छोड़ने को कोर्ट ने गंभीरता से लिया और जेलर को तलब कर चेतावनी दी. अभियुक्त के नाम में कुमार न जुड़े होने के कारण जेल अधीक्षक ने जमानत पर रिहा करने से मना कर दिया था और अवैध निरूद्धि में बनाये रखा. वहीं, कोर्ट के आदेश पर हाज़िर हुए जेल अधीक्षक ने हलफनामा दाखिल कर बताया है कि अभियुक्त को आठ दिसम्बर 2020 को जमानत पर रिहा कर दिया गया है.