भगत सिंह (Bhagat Singh) 4 अप्रैल 1929 से 23 मार्च 1931 तक लगातार जेल रहें. लेकिन उस समय भी
भारत की आजादी और क्रान्ति के सन्दर्भ में धर्म और राजनीति के पेचीदा संबंधों को
वे भूले नहीं. मृत्यु के पहले जब महान नास्तिक भी आस्तिक बन जाता है. भगत सिंह ने
फांसी के सिर्फ पांच माह पहले 6 अक्टूबर 1930 को मैं नास्तिक क्यों हूँ? (Why i am an atheist) लिखा था.
धर्म के ठेकेदारों को उन्होंने चुनौती देते पूछा:
वह अंग्रेजो के
मन में ऐसी भावना क्यों नहीं पैदा कर देता है कि वे हिन्दुस्तान को आजाद कर दें.
वह क्यों नहीं
तमाम पूंजीवादियों के दिल में परोपकारी उत्साह भर देता कि वे उत्पादन के साधनों पर
व्यक्तिगत सम्पत्ति का अपना अधिकार त्याग दें और इस तरह न केवल सम्पूर्ण श्रमिक
समुदाय, बल्कि समस्त मानव
समाज को पूंजीवादियों की बेड़ियो से मुक्त करें.
आप समाजवाद को
व्यवहारिकता पर तर्क करना चाहते हैं. मै इसे आपके सर्वशक्तिमान पर छोड़ देता हूँ की
वह उसे लागू करे. क्या आप मुझसे यह जानना चाहते हैं की यदि मै ईश्वर को नहीं मानता
तो इस विश्व की उतपत्ति की व्याख्या कैसे करता हूँ?
यह एक प्राकृतिक घटना है विभिन्न पदार्थो के आकस्मिक संयोग से उतपन्न निहारिका से पृथ्वी की उतपत्ति हुई. इसी तरह जीवधारी उतपन्न हुए. और उनसे लम्बे अरसे बाद मनुष्य का विकास हुआ.
जब उनका अपना
जीवन अंत की ओर बढ़ रहा था तब भारतवासियों के अंधविश्वास से मुक्त करने के लिए भगत
सिंह ने वैज्ञानिक विचारों की ओर ध्यान आकर्षित किया. यह अपने विचारों के प्रति समर्पित और अडिग रहने की अनोखी मिसाल है.
नई आर्थिक नीति
अपनाने के बाद देश की दिशा आज दूसरी तरफ है जहां तंत्रमंत्र के साथ विभिन्न तरह के
अन्धविश्वास समाज पर हावी हो रहें हैं. भगत सिंह और उस ज़माने के तमाम क्रांतिकारी
हथियारबंद लड़ाई में विशवास रखते हुए भी महान मानवतावादी थे. सैंडर्स की हत्या के
बाद लाहौर की दीवारो पर लाल पर लाल स्याही से छपे पोस्टरों में कहा गया था
हम मनुष्य के
जीवन को पवित्र समझते हैं. हम ऐसे उज्ज्वल
भविष्य में विशवास रखते हैं. जिसमे प्रत्येक को पूर्ण शांति और स्वतंत्रता का अवसर
मिल सके. हम इंसान के खून बहाने की अपनी विवशता पर दुखी हैं लेकिन क्रान्ति द्वारा
सबको सामान स्वतंत्रता देने और मनुष्य के शोषण को समाप्त कर देने के लिए कुछ
रक्तपात अनिवार्य है
भगत सिंह ने
असेम्ब्ली में जो बम्ब गिराए थे. उसका मकसद उनके क्रान्ति के सन्देश को फैलाना था न
की किसी को मारना अथवा चोट पहुंचना.
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को समय से पहले फ़ासी दे
दी गयी. शासक वर्ग इस फांसी पर होने वाले जनाक्रोश से द्र हुआ था. अंतिम बुलावे के
समय भगत सिंह एक किताब पढ़ रहे थे. वह थी लेनिन की राज्य और क्रान्ति प्रहरी को
उन्होंने कहा रुको अभी एक क्रांतिकारी
दूसरे क्रांतिकारी से बात कर रहा है. परहरि तो उस समय रुका नहीं लेकिन इतिहास आज
रुक कर उस तरफ ताक रहा है. न इतिहास आज
रुक कर उस तरफ ताक रहा है.