देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू (Pandit Jawahar Lal Nehru) के निधन पर अटल बिहारी वाजपेयी ने अलग ही अंदाज में उन्हें श्रद्धांजलि दी थी. आईए डालते हैं एक नजर, आखिर किस तरह से अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में 29 मई 1964 को जवाहर लाल नेहरू को श्रद्धांजलि दी थी.
एक सपना था जो अधूरा रह गया.
एक सपना था जो अधूरा रह गया. एक गीत था जो गूँगा हो गया. एक लौ थी जो अनंत में विलीन हो गई. सपना था एक ऐसे संसार का जो भय और भूख रहित होगा. गीत था एक ऐसे महाकाव्य का जिसमें गीता की गूंज और गुलाब की गंध थी. लौ थी एक ऐसे दीपक की जो रात भर जलता रहा, हर अंधेरे से लडता रहा और हमें रास्ता दिखा कर एक प्रभात के निर्वाण को प्राप्त हो गया.
भारत माता का सबसे प्यारा लाडला आज खो गया.
मृत्यु ध्रुव सत्य है. शरीर नश्वर है. कल कंचन की जिस काया को हम चंदन की चिता पर चढ़ा कर आए उसका नाश निश्चित था. लेकिन क्या यह जरूरी था कि मौत इतनी चोरी-छिपे आती? जब संगी साथी सोए पड़े थे, जब पहरेदार बेखबर थे. हमारे जीवन की अमूल्य निधि लुट गई. भारत माता आज शोकमगन है- उसका सबसे लाडला राजकुमार खो गया. मानवता आज खिन्नमना है- उसका पुजारी हो गया. शांति आज अशांत है. उसका रक्षक चला गया. दलितों का सहारा छूट गया. जन जन की आंखों का तारा टूट गया. यवनिका पात हो गया. विश्व के रंगमंच का प्रमुख अभिनेता अपना अंतिम अभिनय दिखाकर अंतर्ध्यान हो गया.
शांति के पुजारी, किंतु क्रांति के अग्रदूत थे.
वाल्मीकि ने रामायण में भगवान राम के संबंध में कहा है कि वे असंभवों के समन्वय थे. पंडित जी के जीवन में महाकवि के उसी कथन की एक झलक दिखाई देती है. वह शांति के पुजारी, किंतु क्रांति के अग्रदूत थे. वे अहिंसा के उपासक थे. किंतु स्वाधीनता और सम्मान की रक्षा के लिए हर हथियार से लड़ने के हिमायती थे.
दुर्भाग्य है कि इस उदारता को दुर्बलता समझा गया.
वे व्यक्तिगत स्वाधीनता के समर्थक थे, किंतु आर्थिक समानता लाने के लिए प्रतिबद्ध थे. उन्होंने समझौता करने में किसी से भी नहीं खाया किंतु किसी से भयभीत होकर समझौता नहीं किया. पाकिस्तान और चीन के प्रति उनकी नीति इसी अद्भुत सम्मिश्रण की प्रतीक थी. उनमें उदारता भी थी, दृढ़ता भी थी. यह दुर्भाग्य है कि इस उदारता को दुर्बलता समझा गया जबकि कुछ लोगों ने उनकी दृढ़ता को हठवादिता समझा.
मुझे याद है, चीनी आक्रमण के दिनों में जब हमारे पश्चिमी मित्र इस बात का प्रयत्न कर रहे थे कि हम कश्मीर के सवाल पर पाकिस्तान से कोई समझौता कर लें, तब एक दिन मैंने उन्हें बड़ा क्रुद्ध पाया. जब उनसे कहा गया कि कश्मीर के सवाल पर समझौता नहीं होगा तो हमें दो मोर्चों पर लड़ना पड़ेगा तो बिगड़ गए और कहने लगे कि अगर आवश्यकता पड़ेगी तो हम दोनों मोर्चों पर लड़ेंगे. किसी दबाव में आकर वो बातचीत करने के खिलाफ थे.
जिस स्वतंत्रता के सेनानी और संरक्षक थे आज वह स्वतंत्रता संकटपन्न है. संपूर्ण शक्ति के साथ हमें उसकी रक्षा करनी होगी. जिस राष्ट्रीय एकता और अखंडता के वे उन्नायक थे. आज वह भी विपदाग्रस्त है. हर मूल्य चुका कर हमें उसे कायम रखना होगा.
सूरज ढल चुका है.
नेता चला गया, अनुयायी रह गए. सूर्य अस्त हो गया तारों की छाया में हमें अपना मार्ग ढूंढना है. यह एक महान परीक्षा का काल है यदि हम सब अपने को समर्पित कर सकें. एक ऐसे महान उद्देश्य के लिए जिसके अंतर्गत भारत सशक्त हो, समर्थ और समृद्ध हो और स्वाभिमान के साथ विश्व शांति की चिरस्थापना में अपना योगदान दें तो हम उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने में सफल होंगे.
संसद में उनका आभाव कभी नहीं भरेगा. शायद तीन मूर्ति को उन जैसा व्यक्ति कभी नहीं कभी भी अपने अस्तित्व से सार्थक नहीं करेगा. वह व्यक्तित्व, वह जिंदादिली, विरोध को भी साथ लेकर चलने की वह भावना, वह सज्जनता, वह महानता शायद निकट भविष्य में देखने को नहीं मिलेगी. मतभेद होते हुए भी उनके महान आदर्शों के प्रति, उनकी प्रमाणिकता के प्रति, उनकी देशभक्ति के प्रति और उनके अटूट साहस के प्रति हमारे हृदय में आदर के अतिरिक्त और कुछ नहीं है.
इन्हीं शब्दों के साथ मैं उस महान आत्मा के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.
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