अछूत होने के कारण कोई बाल नहीं कटता था
बचपन में अम्बेडकर का नाम भीमा हुआ करता था। भीमा को सतारा में रहते हुए अस्पृश्यता के प्रहारों को सहन करना पड़ता था। उसके सिर के बाल काटने के लिए कोई हज्जाम तैयार नहीं होता था। इसलिए उसकी बड़ी बहन ही उसकी हजामत बनाया करती थी।
अछूत होने के कराण कोई गाड़ी पर बैठाने को नहीं हुआ तैयार
अकाल के दिनों में पिता रामजी सूबेदार को गोरेगांव के पास काम पर तैनात किया गया। उसके बच्चे सतारा में रहते थे। एक बार भीमा अपने भाई और भांजो को साथ लेकर रेलगाड़ी से गोरेगांव पहुँचा। मगर स्टेशन से गांव तक पहुंचने के लिए उसे और साथियों को, अछूत होने के कारण कोई गाड़ीवान अपनी गाड़ी में ले जाने को तैयार नहीं हुआ।
जब डेढ दिन प्यासे रहे अम्बेडकर
आखिर में एक बैलगाड़ी वाला तैयार हुआ, मगर बैलगाड़ी भीम को हांकनी पड़ी। गाड़ीवान गाड़ी पर विराजमान अवश्य था, लेकिन अस्पृश्य के लिए गाड़ी हांकना उसे अपने आन के खिलाफ लग रहा था। किसी को भी इन बच्चों पर दया नहीं आई, उन्हे डेढ दिन तक बिना पानी के गुजारा करना पड़ा। क्योंकि अछूत होने के कारण उन्हें किसी भी कुए से पानी पीने नहीं दिया गया। दूसरे दिन भीम और उसके साथी अधमरे से अपने मंजिल तक पहुँचे।
स्कूल में हुआ अपमान
एक बार अध्यापक ने भीमा को ब्लैकबोर्ड रेखागणित का एक सिद्धांत सिद्ध करने को बुलाया तो सारे विद्यार्थियों ने शोरगुल मचाकर उस ब्लैकबोर्ड के पास रखे गए अपने खाने के डिब्बों को वहाँ से तुरंत हटा लिया ताकि वे अपवित्र न हो जाएं और उसके बाद ही भीम उस सूत्र को ब्लैकबोर्ड पर सिद्ध कर सका। इस तरह की अपमानजनक घटनाओं से भीम का मन में विद्रोह करने के उद्यत हो उठा।