विक्रम प्रसाद पाठक
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलाना अब्दुल कय्यूम रहमानी का जन्म 20 जनवरी 1918 ग्राम दुधवनिया बुजुर्ग थाना ढेबरूआ पोस्ट बढ़नी जनपद सिद्धार्थनगर उत्तर प्रदेश के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था।
मौलाना के परिवार मझौली राज्य देवरिया महाराजा बौद्धमल थे। बिसेन बटिका सन 1887, खड़क बहादुर मल बिसेन ने बौद्धमल का उल्लेख मझौली के 104 वें राजा के रूप में किया है, जिन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर अपना नाम मोहम्मद सलीम रखा था। उन्हीं के नाम से देवरिया में सलेमपुर कस्बा एवं रेलवे स्टेशन मौजूद है।
सेनानी के रूप में
जिस समय मौलाना दिल्ली में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे उस जमाने में पूरे देश में स्वतंत्रता आंदोलन बड़े जोर शोर पर चल रहा था। देश वासियों पर अंग्रेजी हुकूमत की जुल्म ज्यादती चरम सीमा पर थी। आंदोलन कारियो को तरह तरह की सजाए दी जा रही थीं और उन्हें काला पानी आदि स्थानों पर अमानवीय यातनाएं दी जा रहीं थीं। जिसने उनके मन को झकझोर दिया और मौलाना आज़ादी के आंदोलन में शामिल हो गए।
जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने "अंग्रेजों भारत छोडो का नारा दिया" तो मौलाना भी स्वतंत्रता आंदोलन में पूर्ण रूप से शामिल हो गए।
कांग्रेस द्वारा चलाए जा रहे आंदोलनों एवं कार्यक्रमों में शामिल होने के कारण मौलाना साहब अंग्रेज सरकार की नजर में आ गए और ब्रिटिश सरकार ने उनको उनके पैतृक गांव दुध्वानिया बुजुर्ग से गिरफ्तार कर लिया और उनको बस्ती जेल में रखा गया।
बस्ती जेल से गोरखपुर फिर इलाहाबाद नैनी जेल में दिनांक 22 अगस्त 1942 से 22 मई 1943 तक रखा गया।
मौलाना को नैनी जेल में लाल बहादुर शास्त्री, फिरोज गांधी, हजरत मौलाना हुसैन अहमद मदनी, पण्डित सुंदर लाल, मुजफ्फर हुसैन, ड्रा काटजू, पुरषोत्तम दास टंडन, विशंभर दयाल, पण्डित कमला पति त्रिपाठी आदि देश के ख्याति प्राप्त राजनेताओं के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
मौलाना का बैरक सेनानियों के लेकचर रूम की तरह प्रयोग में लाया जाता था। जहां सभी कांग्रेस नेता एकत्र होकर आजादी की लड़ाई क्यों लडी जा रही है? और हमें क्या करना चाहिए? जैसे विषयों पर चर्चा करते थे।
नैनी जेल से रिहा होने के बाद मौलाना आज़ादी के आंदोलन में और भी उत्साह के साथ लग गए। एक बार दो माह के लिए लखनऊ में नजरबंद रहे।
स्वतंत्रता सेनानी श्री कृपा शंकर के अनुसार इलाहाबाद ले जाने के पहले गोरखपुर में 24 घंटे तक एक छोटे कमरे में कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को रखा गया, वह सजा दस वर्ष के सजा से ज्यादा कष्टप्रद थी।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु से लेकर प्रधानमत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री, प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी, प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह तक आपको व्यक्तिगत रूप से जानते थे।
उत्तर प्रदेश के कई मुख्यमंत्रियों से मौलाना के निजी सम्बन्ध थे। इतना व्यापक राजनैतिक सम्बन्ध होने के बावजूद मौलाना ने कभी सत्ता का कोई लाभ नहीं लिया।
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