चंद्रशेखर ने सपा के बागी व मौजूदा सांसद अवधेश पासी के करीबी रहे सूरज चौधरी को अपनी पार्टी का उम्मीदवार बनाकर समाजवादी पार्टी और भाजपा के समीकरणों को चुनौती दे दी है।
यह कदम खासतौर पर महत्वपूर्ण है क्योंकि सपा ने अजीत प्रसाद को, जो सांसद अवधेश प्रसाद के पुत्र हैं, अपना प्रत्याशी बनाया है, जबकि भाजपा ने चंद्रभानु पासवान को मैदान में उतारा है। दोनों पार्टियों ने पासी समुदाय के उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं।
बसपा सुप्रीमों मायावती ने इस चुनाव में अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है। कांग्रेस भी इस चुनाव में सपा उम्मीदवार का समर्थन करेगी।
ऐसे में चंद्रशेखर का यह दांव न केवल पासी समुदाय के वोटों को विभाजित कर सकता है, बल्कि विपक्षी दलों की रणनीतियों को भी कमजोर कर सकता है।
आजाद समाज पार्टी का यह कदम चंद्रशेखर की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और उनकी पार्टी की बढ़ती भूमिका को भी दर्शाता है। अब देखना होगा कि 5 फरवरी 2025 को होने वाले मतदान में यह फैसला कितनी बड़ी भूमिका निभाता है और 8 फरवरी को इसका क्या नतीजा निकलता है।
मिल्कीपुर में पासी समुदाय की अहम भूमिका
पासी समुदाय यहां सबसे बड़ा दलित वर्ग है, और इनकी आबादी लगभग 25-30% है। सपा और भाजपा ने पासी समुदाय को ध्यान में रखते हुए अपने उम्मीदवार इस समुदाय से उतारे हैं। चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी का फोकस भी इस समुदाय के वोटों पर है।
ओबीसी
ओबीसी समुदाय में यादव, कुर्मी, और लोध जातियां प्रमुख हैं। यादव समुदाय पारंपरिक रूप से सपा का समर्थन करता है। कुर्मी और अन्य ओबीसी जातियों का झुकाव अक्सर भाजपा की ओर देखा गया है। ओबीसी वोटर मिल्कीपुर में लगभग 20-25% हैं।
मिल्कीपुर में मुस्लिम वोट
मुस्लिम आबादी इस क्षेत्र में लगभग 12-15% है। पारंपरिक रूप से मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी के पक्ष में जाते रहे हैं। अगर मुस्लिम वोट एकजुट रहते हैं, तो यह सपा के लिए लाभदायक हो सकता है।
सामान्य वर्ग
ब्राह्मण, क्षत्रिय, और बनिया जातियां इस वर्ग में आती हैं।
इनकी आबादी यहां लगभग 15-18% है। यह वर्ग भाजपा का परंपरागत वोटबैंक माना जाता है।
मिल्कीपुर का जातीय समीकरण सभी दलों के लिए चुनौतीपूर्ण है। चंद्रशेखर आजाद की एंट्री ने समीकरण को और पेचीदा बना दिया है। दलित और ओबीसी वोटों का विभाजन यहां के नतीजों को प्रभावित कर सकता है।