![]() |
Maulana Abdul Qayyum Rahmani |
विक्रम प्रसाद पाठक
उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के बढ़नी ब्लॉक के दुधवानिया बुजुर्ग गांव में 10 जनवरी 1920 को जन्में मौलाना अब्दुल कय्यूम रहमानी का स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा। मौलाना पढ़ाई के दौरान से ही स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े जिसके कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। वह देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के करीबियों में शामिल रहे।
गांव में ही प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद मौलाना ने भारत नेपाल सीमा पर स्थित जामिया सराजुल उलूम मे पढाई करने के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए देश विभाजन से पहलेे प्रसिद्ध संस्था "दारूल हदीस रहमानिया" देहली मे दाखिल हुए।
इसी समय देश की आजादी के लिए महात्मा गाँधी जी ने "अंग्रेजो भारत छोडो का नारा दिया" तो मौलाना भी पूर्ण रूप से स्वतंत्रता आंदोलन मे शामिल हो गये। कई सालों तक दिल्ली में बड़े आंदोलनकारियों के साथ अंग्रेजों से लोहा लेते रहे।
कांग्रेस द्वारा चलाये जा रहे आंदोलनो एंव कार्यक्रमों मे शामिल होने के कारण मौलाना साहब अंग्रेज सरकार की नजर मे आ गए। 1942 में जब वह गांव लौटे तो ब्रिटिश सरकार ने उनको उनके पैत्रिक गाँव दुधवनिया बुजुर्ग से गिरफ्तार कर लिया और उनको बस्ती जेल मे रखा और फिर वही से गोरखपुर पुन: नैनी इलाहाबाद जेल मे दिनाँक 22.8.1942 ई. से दिनाँक 22.5.1943 ई. तक रखा गया।
मौलाना नैनी जेल के जिस बैरक में बंद थे। उसी में लाल बहादुर शास्त्री, फिरोज गाँधी, हजरत मौलाना हुसैन मदनी, असीरे मालटा, मुजफ्पर हुसैन, डाक्टर काटजू, पुरूषोत्तम दास टंडन, विशम्भर दयाल, पंडित कमला पति त्रिपाठी आदि देश के ख्याती प्राप्त राजनेता नजरबन्द थे।
एक बार दो माह के लिए लखनऊ मे नजरबन्द रहे। स्वतंत्रता सेनानी श्री कृपा शंकर के कथनानुसार इलाहाबाद ले जाने के पहले गोरखपुर मे 24 घंटे तक एक छोटे कमरे मे कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को रखा गया, वह सजा दस वर्ष की सजा से कष्टपर्द थी।
गांव में ही प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद मौलाना ने भारत नेपाल सीमा पर स्थित जामिया सराजुल उलूम मे पढाई करने के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए देश विभाजन से पहलेे प्रसिद्ध संस्था "दारूल हदीस रहमानिया" देहली मे दाखिल हुए।
इसी समय देश की आजादी के लिए महात्मा गाँधी जी ने "अंग्रेजो भारत छोडो का नारा दिया" तो मौलाना भी पूर्ण रूप से स्वतंत्रता आंदोलन मे शामिल हो गये। कई सालों तक दिल्ली में बड़े आंदोलनकारियों के साथ अंग्रेजों से लोहा लेते रहे।
गांव पहुंचते ही हो गई थी गिरफ्तारी
कांग्रेस द्वारा चलाये जा रहे आंदोलनो एंव कार्यक्रमों मे शामिल होने के कारण मौलाना साहब अंग्रेज सरकार की नजर मे आ गए। 1942 में जब वह गांव लौटे तो ब्रिटिश सरकार ने उनको उनके पैत्रिक गाँव दुधवनिया बुजुर्ग से गिरफ्तार कर लिया और उनको बस्ती जेल मे रखा और फिर वही से गोरखपुर पुन: नैनी इलाहाबाद जेल मे दिनाँक 22.8.1942 ई. से दिनाँक 22.5.1943 ई. तक रखा गया।
![]() |
Thana Dhebarua Siddharthnagar |
मौलाना नैनी जेल के जिस बैरक में बंद थे। उसी में लाल बहादुर शास्त्री, फिरोज गाँधी, हजरत मौलाना हुसैन मदनी, असीरे मालटा, मुजफ्पर हुसैन, डाक्टर काटजू, पुरूषोत्तम दास टंडन, विशम्भर दयाल, पंडित कमला पति त्रिपाठी आदि देश के ख्याती प्राप्त राजनेता नजरबन्द थे।
दस वर्ष के बराबर थी 24 घंटे की सजा
एक बार दो माह के लिए लखनऊ मे नजरबन्द रहे। स्वतंत्रता सेनानी श्री कृपा शंकर के कथनानुसार इलाहाबाद ले जाने के पहले गोरखपुर मे 24 घंटे तक एक छोटे कमरे मे कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को रखा गया, वह सजा दस वर्ष की सजा से कष्टपर्द थी।
![]() |
Maulana Abdul Qayyum Rahmani With Pandit J. Nehru |
मौलाना और उनके साथियों की देन है कि आज बस्ती, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, गोंडा, महाराजगंज जनपद साम्प्रदायिक सौहार्द के एक उदाहरण हैं। मौलाना अपने जीवन के अंतिम दिनो में भी अपने साथी स्वतंत्रता सेनानियों कृपा शंकर, श्री राम शंकर, श्री कृष्णचंद्र शास्त्री, श्री काजी अदील अब्बासी, श्री काजी जलील अब्बासी, श्री अब्दुल हकीम, श्री शीतल प्रसाद त्रीपाठी को बड़े सम्मान के साथ याद करते थे। महात्मा गांधी के अहिंसा आंदोलन और मौलाना आजाद के राष्ट्रवाद से वह बेहद प्रभावित थे।
देश आजाद हुआ तो मौलाना ने शिक्षा की अलख जगाने का बीड़ा उठाया। बढ़नी में गांधी आदर्श विघालय इंटर कालेज के संस्थापक सदस्य रहे। हाईस्कूल और बाद मे इंटर कालेज की मान्यता मिली और मौलाना कालेज के प्रबन्धक भी रहे अपने प्रबन्धकीय कार्यकाल मे मौलाना ने सोलह एकड जमीन खरीदकर शिक्षा संस्था को दिया।
इस्लामी शिक्षा के लिए मौलाना साहब ने अकरहरा सिद्धार्थनगर में दरसगाह इस्लामिया नाम से संस्था कायम की जो आज भी चल रही है।
जामिया सिराजुल उलूम (कृष्णानगर नेपाल) में आगे बढाने मे भरपूर सहयोग किया और स्वयं संस्था के 25 वर्षो तक अध्यछ रहे।अल्पसंख्यको में आधुनिक शिक्षा प्रसार के लिए मुस्लिम हायर सेकण्डरी स्कूल ग्राम महदेईया मे जो नौगड के निकट है,जिसे मौलाना साहब ने स्थापित किया था। जो आज जिले का प्रमुख मान्यता प्राप्त विघालय है।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री स्व. श्रीमति इंदिरा गाँधी, स्व चौधरी चरण सिंह तक आपको व्यक्तिगत रूप से जानते थे उत्तर प्रदेश के कई मुख्यमंत्रियों से आपके निजी सम्बंध थे। इतना व्यापक राजनैतिक सम्बन्ध होने के बाद आपने कभी कोई सत्ता का लाभ नही लिया।
मौलाना अब्दुल कयूम साहब इस्लामी शिक्षा के देश और विदेशों में भी कुरान और हदीस की आधिकारिक विद्वान के रूप में माने जाते थे यही कारण था कि मध्यपूर्व से न जाने कितने शिक्षा प्रेमी आपसे मिलने,देखने और शिक्षा लेने के लिए अत्यंत पिछड़े जनपद सिद्धार्थनगर के छोटे से गांव "दुधवनियां बुजुर्ग आया करते थे। इस्लाम में कहीं विश्व गुरू जैसा शब्द नहीं है और न ही इसका कही इस्तेमाल हुआ है। इसके बावजूद मध्य पूर्व विशेष कर सऊदी अरब के लोग मौलाना को शैखुल आलम अर्थात विश्व गुरू कहते थे।
मौलाना से शिक्षा लेने वालों में मदीना शरीफ के मस्जिद ए नबवी के इमाम शेख अली अब्दुल रहमान अल हुफैजी, मदीना विश्व विघालय के हदीस विभागध्यछ शेख मो.इब्राहिम, डा0 यहया जैसे लोग है।
शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान
देश आजाद हुआ तो मौलाना ने शिक्षा की अलख जगाने का बीड़ा उठाया। बढ़नी में गांधी आदर्श विघालय इंटर कालेज के संस्थापक सदस्य रहे। हाईस्कूल और बाद मे इंटर कालेज की मान्यता मिली और मौलाना कालेज के प्रबन्धक भी रहे अपने प्रबन्धकीय कार्यकाल मे मौलाना ने सोलह एकड जमीन खरीदकर शिक्षा संस्था को दिया।
इस्लामी शिक्षा के लिए मौलाना साहब ने अकरहरा सिद्धार्थनगर में दरसगाह इस्लामिया नाम से संस्था कायम की जो आज भी चल रही है।
जामिया सिराजुल उलूम (कृष्णानगर नेपाल) में आगे बढाने मे भरपूर सहयोग किया और स्वयं संस्था के 25 वर्षो तक अध्यछ रहे।अल्पसंख्यको में आधुनिक शिक्षा प्रसार के लिए मुस्लिम हायर सेकण्डरी स्कूल ग्राम महदेईया मे जो नौगड के निकट है,जिसे मौलाना साहब ने स्थापित किया था। जो आज जिले का प्रमुख मान्यता प्राप्त विघालय है।
राजनैतिक समबन्ध
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री स्व. श्रीमति इंदिरा गाँधी, स्व चौधरी चरण सिंह तक आपको व्यक्तिगत रूप से जानते थे उत्तर प्रदेश के कई मुख्यमंत्रियों से आपके निजी सम्बंध थे। इतना व्यापक राजनैतिक सम्बन्ध होने के बाद आपने कभी कोई सत्ता का लाभ नही लिया।
विद्वान के रूप मे
मौलाना अब्दुल कयूम साहब इस्लामी शिक्षा के देश और विदेशों में भी कुरान और हदीस की आधिकारिक विद्वान के रूप में माने जाते थे यही कारण था कि मध्यपूर्व से न जाने कितने शिक्षा प्रेमी आपसे मिलने,देखने और शिक्षा लेने के लिए अत्यंत पिछड़े जनपद सिद्धार्थनगर के छोटे से गांव "दुधवनियां बुजुर्ग आया करते थे। इस्लाम में कहीं विश्व गुरू जैसा शब्द नहीं है और न ही इसका कही इस्तेमाल हुआ है। इसके बावजूद मध्य पूर्व विशेष कर सऊदी अरब के लोग मौलाना को शैखुल आलम अर्थात विश्व गुरू कहते थे।
मौलाना से शिक्षा लेने वालों में मदीना शरीफ के मस्जिद ए नबवी के इमाम शेख अली अब्दुल रहमान अल हुफैजी, मदीना विश्व विघालय के हदीस विभागध्यछ शेख मो.इब्राहिम, डा0 यहया जैसे लोग है।