एक अखबार के रिपोर्ट के मुताबिक, तहसील क्षेत्र के छतहरा गांव की सुमन का आरोप है कि लेखापाल ने साल भर पहले वरासत के नाम पर तीन हजार रुपये ले लिए. लेकिन अभी तक वह तहसील का चक्कर लगा रहीं हैं. उनका काम आजतक नहीं हुआ. वो तहसील आती हैं तो लेखपाल दुनिया भर की हीला-हवाली ही करते है. ऐसे ऐसे साल गुजर गया लेकिन काम नहीं हुआ.
खैर, वसूली का मामला नया नहीं हैं. सरकार चाहे बसपा, सपा, काग्रेस की हो या भाजपा की लेकिन अवैध वसूली का ये धंधा बंद नहीं होता. ये लगातर चलता रहता है. शिकायतें होती तो हैं लेकिन कार्यवाई के नाम पर बस दिखावा होता है.
इस मामले का संज्ञान में आने के बाद तहसीलदार ने सोमवार को लेखपाल को तलब कर लिया. पीड़ित महिला सुमन को भी अपनी बात रखने के लिए तहसीलदार ने सूचना भेजा है.
अब देखना है कि तहसीलदार पीड़ित महिला को न्याय दे पाते हैं या नहीं. गौरतलब हो कि सोमवार को किसान यूनियन की सिद्धार्थ नगर इकाई ने एसडीएम शिवमूर्ति को एक ञापन सौंप कर किसानों के वरासत खसरा कागजात बनाने के लिए लेखपालो द्वारा अवैध रूप से रूपय़ो की वसूली पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाने की मांग की है.
ऐसे हर रोज ना जाने कितने लोग रिश्वत देते हैं. जिसका काम हो गया उसे फर्क़ नहीं पड़ता. जिसका नहीं हुआ वो कुछ बोल नहीं पाता बस दबी आवाज में ही कोसता हुआ चुप हो जाता है. कभी कभार ऐसे आवाज उठकर सामने आते हैं. वैसे रिश्वतखोरी को अब हमारे सामाज ने ही फैशन बना दिया है जो समाज के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए काफी महंगा साबित हो रहा.