सद्दाम खान
सिद्धार्थनगर:कोरोना वायरस हवा में प्रोटीनयुक्त आवरण में कैद डीएनए अथवा आरएनए के टुकड़े हैं जिनका आकार एक मीटर के अरबवें हिस्से तक होता है। आनन-फानन में तैयार चलताऊ मास्क इस छोटे जीव को आपके अंदर जाने अथवा बाहर आने से रोकने में 100% सक्षम नहीं हैं। इसलिए बेहतर क्वालिटी का मास्क उपयोग में लाएं।
फिलहाल हम नहीं जानते कि कोरोना बाहरी वातावरण में कितनी देर जीवित रह सकता है, शायद कुछ घण्टे अथवा दिन... इसलिए बाहरी चीजों को छूने से परहेज करें। हाथों को अवश्य धोएं और हाथों को मुंह पर लगाने अथवा नाखून चबाने से परहेज करें। आप रोगी हैं अथवा नहीं, खांसते/छींकते वक़्त मुंह पर रुमाल लगाएं।
अगर कोरोना आपके सांस के द्वारा आपके फेफड़ों में दाखिल हो जाता है तो यह सबसे पहले आपके फेफड़ों के रक्षात्मक आवरण "एपीथीलियल कोशिकाओं" को निशाना बनाता है। किसी कोशिका में दाखिल होने के बाद कोरोना कोशिका की आंतरिक मशीनरी को हाइजैक करके अपनी असंख्य कॉपी तैयार करता है, तत्पश्चात उस बंधक कोशिका की हत्या कर लाखों की संख्या में तैयार हुए कोरोना अन्य कोशिकाओं को संक्रमित करने के मिशन पर निकल पड़ते हैं।
आपका इम्यून सिस्टम कोरोना से लड़ने के लिए कई प्रकार की फाइटर कोशिकाओं को भेजता है जो इन कोरोना वायरस को ढूंढ कर खत्म करने का कार्य करती है। अगर कोरोना की तादात हद से ज्यादा बढ़ चुकी है तो इम्यून सिस्टम आपको बचाने के लिए Mass Destruction का आदेश सुना देता है। इस दौरान इम्यून कोशिकाएं नये-नये एंजाइन्म के द्वारा बड़े पैमाने पर कोशिकाओं का संहार करती हैं जिसमें कोरोना के साथ-साथ बड़ी संख्या में स्वस्थ कोशिकाएं भी मारी जाती हैं।
अधिकतर केसेस में आखिरकार इम्यून सिस्टम की ही जीत होती है पर यह कोरोना भी कम दुष्ट नहीं। ये कोशिश करते हैं कि इम्यून सिस्टम की फाइटर कोशिकाओं को ही संक्रमित कर सकें। इस तरह फाइटर कोशिकाएं भ्रमित हो आपस में ही मार-काट करने लगती हैं। ऐसे कई केसेस में आखिरकार कोरोना इम्यून सिस्टम पर भारी पड़ फेफड़ों के रक्षा कवच "एपिथिलियल कोशिकाओं" को चट कर जाते हैं। रक्षा कवच के हटते ही गैस एक्सचेंज को अंजाम देने वाली "अल्वीओलाई परत" अनावृत हो जाती है। तब शरीर में मौजूद दूसरे बैक्टीरिया मौके का फायदा उठाते हैं और अल्वीओलाई में मौजूद Air-transportation packets के सहारे रक्त में घुस जाते हैं और द्रुत वेग से अपनी जनसंख्या बढ़ाते हुए पूरे शरीर पर कब्जा कर लेते हैं। हवा के आवागमन हेतु मौजूद पैकेट्स बैक्टीरिया के द्वारा बन्द हो जाने के कारण रोगी सांस लेने में कठिनाई का अनुभव करने लगता है। और अंततः उसकी मृत्यु हो जाती है।
कोरोना का कोई इलाज संभव नहीं है। कमजोर इम्यून सिस्टम के कारण बुजुर्गों पर यह आफत ज्यादा भारी है। किसी भी महामारी में सबसे ज्यादा मायने यह रखता है कि शुरुआती दौर में संक्रमण की रफ़्तार को कितना धीमा किया जा सकता है। जाहिर है कि किसी भी देश में बुनियादी मेडिकल सर्विस सीमित होती है। अगर शुरुआती दौर में मरीजों की संख्या बेहद बढ़ जाए तो स्वास्थ्य तंत्र का ढांचा चरमरा जाता है। रोग के फैलने की रफ्तार सीमित रहे तो रोगियों का उचित इलाज भी संभव है और साथ ही साथ शरीर को समय मिलता है कि हमारे शरीरों के आंतरिक इम्यून सिस्टम इस रोग पर विजय प्राप्त कर सकें। जागरूकता कार्यक्रम में मौजूद सभी लोगों को विश्व सेवा संघ अध्यक्ष सुनील केसी, व दीनानाथ ने मास्क बाँटी व प्राकृतिक खेती,वर्मी कॉम्पोस्ट, मशरूम के बारे में जानकारी दी।
सुनील केसी ने कहा की
साप्ताहिक लॉक-डाउन का सख्ती से पालन करें, और दूसरों से भी करवाएं। अन्यथा भारत जैसे देश में लापरवाही विनाश के उन आंकड़ों को जन्म दे सकती है जो हमारे लिए किसी बुरे ख्वाब से कम नहीं होंगे।
सुभाष भारती, संतोष यादव, अरबिंद पाल, पंकज यादव, अमित यादव, प्रिंस कुमार, महफूज आलम, माता प्रसाद चौधरी, दिलीप पांडेय, बरसाती पासवान, शिव प्रताप चौधरी, अनिल भारती आदि उपस्थित रहे।