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Bhagat Singh Hunger Strike In Jail |
भगत सिंह Bhagat Singh Hunger Strike In Jail और उनके
क्रांतिकारी साथियों ने 14 जून 1929 से लेकर 5 अक्टूबर 1929 तक
पंजाब की मियांवाली जेल और सेंट्रल जेल, लाहौर में भूख हड़ताल की थी. उनका मकसद था अपने लिए राजनीतिक
कैदियों के हक़ हासिल करना और साम्राजयवाद
की जेल व्यवस्था को बेनकाब करना। इस भूख हड़ताल के दौरान यतीन्द्रनाथ दास 13 सितम्बर
1929 को शहीद हो गए.
भगत सिंह और
बटुकेश्वर दत्त Batukeshwar Datt जब दिल्ली की जेल हवालात में थे तो उन्हें अंग्रेज अपराधियों जैसी
सुविधाएं दी गयीं थी लेकिन मुक़दमे का फैसला हो जाने के बाद वे सुविधाएं समाप्त कर
दी गयी। दिल्ली से उन दोनों को एक ही
ट्रेन के अलग अलग डिब्बों में पंजाब लाया गया. भगत सिंह को मियांवाली जेल में और
बटुकेश्वर दत्त को सेंट्रल जेल लाहौर में रखा गया.
उन्हें ले जा रहा
अंग्रेज पुलिस सार्जेंट उनसे बहुत प्रसन्न था. लाहौर पहुंचने से कुछ स्टेशन पहले
ही वह भगत सिंह को बटुकेश्वर दत्त के डिब्बे में ले आया. वे दोनों मिले और तय पाया
की उन्हें जेल पहुँचते ही भूख हड़ताल शुरू कर देनी है. इस प्रकार भूख हड़ताल 14 जून 1929 को प्रारम्भ हुई और अक्टूबर 1929 तक
चली.
इस समय तक
भारीतये राजबंदियों के साथ अमानवीय व्यवहार होता था. अंग्रेज अपराधियों और व कुछ
कांग्रेसी नेताओ को छोड़कर बाकी सब राजबंदियों को साधारण कैदियों की तरह जाता था.
उनके खाने पीने नहाने धोने और पढ़ने लिखने पर ध्यान नहीं देने की बात तो अलग रही
उनसे कड़ी मशक्क्त ली जाती थी और जेल
अधिकारीयों का व्यवहार अपमानजनक था. इससे क्रांतिकारी विक्षुब्ध
रहते थे.
काकोरी काण्ड के बंदियों ने भी भूख हड़ताल की थी. और उन्हें भी हवालात में गोरे अपराधियों जैसी सुवधाएं स्वास्थ्य के आधार पर मिल गयी थी. भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त तो जान हथेली पर रख कर संघर्ष में उतरे थे. वे निम्न स्तर के घिनौने और अपमानजनक व्यवहार को कैसे सहन करते। उन्होंने सरकारी तंत्र को चुनौती दी और जो निशचय कर लिया था, उस पर जेल में अलग अलग रहते हुए भी अडिग रहे.
काकोरी काण्ड के बंदियों ने भी भूख हड़ताल की थी. और उन्हें भी हवालात में गोरे अपराधियों जैसी सुवधाएं स्वास्थ्य के आधार पर मिल गयी थी. भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त तो जान हथेली पर रख कर संघर्ष में उतरे थे. वे निम्न स्तर के घिनौने और अपमानजनक व्यवहार को कैसे सहन करते। उन्होंने सरकारी तंत्र को चुनौती दी और जो निशचय कर लिया था, उस पर जेल में अलग अलग रहते हुए भी अडिग रहे.
4 सितंबर को जेल
से रिहा होने के बाद जब बटुकेश्वर दत्त से पूछा गया कि अलग अलग जेलों में रहते हुए
आपके मन में यह आशंका नहीं आई की शायद आपके साथी बने भूख हड़ताल समाप्त कर या जेल
में पहुंच कर आरम्भ ही न की हो ?
उनका उत्तर था: हमे एक
दूसरे पर अटूट विश्वाश था. अविश्वाश की भावना कभी मन में नहीं आई. जब मेरे सामने
भोजन लाया जाता तो मुझे ध्यान आता कि भगत सिंह भूखा है और मई भोजन को आँख उठाकर भी
नहीं देखता। बस यही हाल उनका भी था.
भूख हड़ताल की
माँगे
भूख हड़ताल के एक
महीना बाद भगत सिंह ने भारत सरकार के होम मेंबर को पत्र लिखा। उसमे निम्नलिखित
मांगे थीं
1-राजनीतिक कैदी
होने के नाते हमें अच्छा खाना देना चाहिए। इसलिए हमारे भोजन का स्तर यूरोपियन
कैदियों जैसा होना चाहिए। हम उसी तरह की खुराक की मांग नहीं करते बल्कि खुराक का
स्तर ही वैसा चाहते हैं.
2-बिना किसी रोक
टोक के पूर्व स्वीकृति पुस्तके और लिखने का सामान मिलने की सुविधा होने चाहिए।
3-कम से कम एक
दैनिक अख़बार हर राजनीतिक कैदी को मिलना चाहिए।
4-हमे मशक्क्त के
नाम पर जेलों में सम्मानहीन काम करने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए।
5-कम से कम एक
दैनिक अखबार हर राजनीतिक कैदी को मिलनी चाहिए।
6-हर जेल में
राजनीतिक कैदियों का एक विशेष वार्ड होना चाहिए इसमें उन सभी जरूरतों की पूर्ति की
सुविधा होनी चाहिए जो यूरोपियन के लिए होती है और जेलों में रहने वाले सभी
राजनीतिक कैदी उस वार्ड में इकट्ठा होने चाहिए।
7-स्नान के लिए
सुविधाएं मिलनी चाहिए।
8-अच्छे कपडे
मिलने चाहिए।
9-उत्तर प्रदेश
जेल सुधार कमेंटी में श्री जगत नारायण और खान बहादुर हिदायत हुसैन की इस सिफारिश
को हम लागू किया जाए की राजनीतिक कैदियों के साथ
अच्छी क्लास के कैदियों का व्यवहार होना चाहिए।
भगत सिंह दिवस
यह भूख हड़ताल सिर्फ अपने
लिए नहीं सभी राजनीतिक कैदियों के साथ अच्छे व्यवहार के लिए थी. इस भूख हड़ताल का
अखबार में खूब प्रचार हुआ. 30 जून 1929 को अखिल भारतीय स्तर पर भगत सिंह दिवस
मनाया गया. जुलूस निकले, जैसे हुए और बहुत से
लोगो ने उस दिन उनकी हमदर्दी में उपवास किया खासकर बंगाल में. लेकिन अपने को सभ्य
कहलाने वाली सरकार टस से मस नहीं हुई.
इस दौरान क्रांतकारी एक के
बाद एक गिरफ्तार होते चले गए. लाहौर में सांडर्स हत्याकांड के सम्बन्ध में षणयंत्र
का मुकदमा चलाने का निर्णय हो चूका था. भगत सिंह मुख्य अभियुक्त थे. भगत सिंह बहुत
कमजोर थे. उनको स्ट्रेचर पर जेल में लाया गया. बोस्टर्ल जेल के क्रांतिकारी
साथियों ने भी भूख हड़ताल पर जाने की घोषणा मजिस्ट्रेट की ही अदालत में कर दी.
यतीन्द्र नाथ दास बहुत सोच समझकर भूख हड़ताल में चार दिन बाद शामिल हुए. भगत सिंह ने
भूख हड़ताल को संघर्ष और प्रचार का माध्यम बनाया। लेकिन यतीन्द्र नाथ ने प्राणो की
बाजी लगाने का निर्णय कर लिया था. उनके लिए यह आमरण अनशन था.
भूख हड़ताल तोड़ने की चालें
सरकार ने भूख हड़ताल को अपनी
प्रतिष्ठा का प्रशन बना लिया था। मांगें स्वीकार करने के बाजए क्रांकरियों को
उनके निश्चय से डिगने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाये गए जब भूख हड़ताल को अपनी
कोठरियों में बंद किया जाता था तो वह मन को ललचाने वाला भोजन और
फल इतियादी रख दिए जाते थे. जेल अधिकारी इधर उधर हट जाते थे और किसी साधारण कैदी
को वहां बैठा दिया जाता था.
मुद्दा यह था की अगर अनशनकारी अपने निश्चय से डिगे और इन चीज़ों को खाये तो इसे क्रांतिकारियों की कमजोरी बताकर उनके विरुद्ध प्रचार किया जाए. लेकिन इन दृण संकल्प वीरों को ललचाने का सवाल नहीं पैदा होता था. भूख हड़ताली तो तुरंत इन चीज़ों को उठाकर बहार फेंक दते थे या फिर वही पड़ी रहती थी. उन्हें ललचायने या डिगने का यह उपाए विफल रहा.
मुद्दा यह था की अगर अनशनकारी अपने निश्चय से डिगे और इन चीज़ों को खाये तो इसे क्रांतिकारियों की कमजोरी बताकर उनके विरुद्ध प्रचार किया जाए. लेकिन इन दृण संकल्प वीरों को ललचाने का सवाल नहीं पैदा होता था. भूख हड़ताली तो तुरंत इन चीज़ों को उठाकर बहार फेंक दते थे या फिर वही पड़ी रहती थी. उन्हें ललचायने या डिगने का यह उपाए विफल रहा.
भूख हड़ताल में भोजन का
त्याग किया जाता हैं लेकिन पानी पिया पिया जाता है और पानी पीना जरुरी भी है.
लेकिन भूख हड़तालियों की कोठरियों में रखे जाने मटके नमे पानी के बजाय जेल अधिकारी
दूध भरवा देते थे. ताकि जब प्यास लगे तो इसे पिने को बाध्य हो जाए पर जेल
अधिकारियों की यह चाल भी विफल हो गयी. भूख हड़ताली दूध भरे मटके तोड़ देते थे.
जब डॉक्टर और कर्मचारी
बलपूर्वक दूध लेके जाते तो अनशनकारी किसी ना किसी उपाय से बाहर निकालने का प्रयास
करते। सुखदेव ने हलक में उंगलिया डालकर दो तीन बार उलटी कर दी इससे सारा दूध निकल
गया. लेकिन उसके बाद यह उपाय भी कारगर नहीं हुआ तब उन्होंने एक मक्खी निगल ली ताकि
उलटी हो और दूध बहार निकले। पर यह उपाय भी सफल नहीं हुआ। किशोरीलाल ने तेज गर्म पानी पीकर गला जला लिया
और लाल मिर्चें खा ली इससे गला इतना खराब हो गया की नली नाक में डालते ची तेज खांसी
हो उठती थी. अगर डॉक्टर नली तुरंत बाहर न निकाले तो मृत्यु हो सकती थी.
पंजाब सरकार ने एक और चाल
चली की काकोरी काण्ड के कैदियों की तरह सेहत के आधार पर खुराक में कुछ सुधार कर
दिया। भगत सिंह ने इसे लेने से इंकार कर दिया क्योकि उनकी मांगों का सेहत से कोई
सम्बन्ध नहीं था. अगले दिन सरकार ने सुधारों का यह आदेश पत्रों में छपवाया तो उसमे
'स्वास्थ्य के आधार पर' शब्द हटा दिए. भगत सिंह ने कहा कि 'ये सुधार सरकारी गजट में छपे और सब राजनीतिक बंदियों के लिए स्थायी रूप से हों तब इन पर विचार किया जा
सकता है.