शरद जयसवाल
हिंदुस्तान के बटवारे के बाद से ही हिंदुत्व लगातार इस बात को प्रचारित और प्रसारित करता रहा है कि यहां के मुसलमानों की सहानुभूति और प्रतिबद्धता पाकिस्तान के साथ है। संघ परिवार उस रणनीति पर शुरू से काम कर रहा है कि अगर एक झूठ को सौ बार बोला जाए तो जनता उसे सच मान लेती हैं। इसी प्रयोग को उसने बड़ी चतुराई के साथ भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट मैच के दौरान इस्तेमाल किया है।
जिला बुरहानपुर गांव मोहाद के 15 लड़कों पर से राजद्रोह का मुकदमा हटाकर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का मुकदमा कायम कर दिया गया था कि इस घटना के गंभीर सियासी निहितार्थ है।
मध्य प्रदेश के गांव मोहद की घटना इस मायने में अलग है कि पहली बार खुद राज्य हिंदुत्व के इस तर्क को वैधता प्रदान कर रहा है कि देश के मुसलमानों की सहानुभूति पाकिस्तान के साथ है। ऐसी घटनााएं जाहिर करती है कि भारतीय राज्य के अंदर मुसलमानों को देशद्रोही बताने को लेकर कितना ज्यादा उतावलापन है। मोहद की घटना से पहले तक मुसलमानों को देशद्रोही कहने के लिए आतंकवाद के मामले में फसाया जाता था। लेकिन पहली बार राज्य के द्वारा क्रिकेट के बहाने मुसलमानों को देशद्रोही बताया जा रहा था और आज पुुलवामा हमले के बाद देश भर में कश्मीरी छात्रों को निशानाा बनाया जा रहा है।
निशाने पर कश्मीरी छात्र
23 फरवरी 2014 को भारत पाकिस्तान मैच के दौरान पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने के आरोप में मेरठ के स्वामी विवेकानंद सुभारती यूनिवर्सिटी के 67 कश्मीरी छात्रों को पहले सस्पेंड किया गया और फिर उन पर राजद्रोह का मुकदमा कायम किया गया बाद में सबूतों के अभाव में राजद्रोह का मुकदमा हटा लिया गया इन कश्मीरी लड़कों के कमरों में पत्थरबाजी की गई। घटना के कुछ समय बाद कई सारे लड़के कॉलेज छोड़ कर वापस कश्मीर लौट गए।
दूसरी घटना ग्रेटर नोएडा के शारदा यूनिवर्सिटी के 4 कश्मीरी लड़कों को हॉस्टल से निकाला गया था। भारत-पाकिस्तान मैच के दौरान हरियाणा में कई ऐसी घटनाएं हुई जब हिंदुत्ववादी गिरोह ने कश्मीरी छात्रों पर हमला किया है दरअसल हिंदुत्व के लिए कश्मीर के लोगों को पाकिस्तान के साथ जोड़ना बहुत मुश्किल नहीं है लेकिन पिछले कुछ सालों में हिंदुत्व ने अपनी इस रणनीति का विस्तार कश्मीर के इतर देश के दूसरे हिस्सों में भी किया है।
हिंदुत्व के इन साजिशों का पर्दाफाश भी हो चुका है। कर्नाटक के बीजापुर के पास श्री राम सेना के कुछ कार्यकर्ताओं को पुलिस ने पाकिस्तानी झंडा फहराने के जुर्म में पकड़ा था। पहले तो श्रीराम सेना के कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान का झंडा फहराया और घटना के अगले दिन आरोपितों की गिरफ्तारी न होने की चलते प्रशासन के खिलाफ धरना भी दिया। जब पुलिस ने इस घटना में संलिप्त श्री राम सेना के छह कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया तो श्री राम सेना के प्रमुख प्रमोद मुतालिक ने इस घटना में सेना के कार्यकर्ताओं की भूमिका से इंकार किया और कहा कि इस साजिश में आरएसएस के लोग शामिल हैं।
पुलिस की भाषा
मोहद गांव से पुलिस के द्वारा 15 मुस्लिम लड़कों को गिरफ्तार किया जाना पुलिस के द्वारा गांव में घुसकर मुसलमानों पर किया गया हमला था। पुलिस उन्हे उनके घर से घसीटते और मारते पीटते हुए थाने ले आई। कई सारे लड़कों को दाढ़ी और टोपी देखकर बिना उनका नाम पूछे ही पुलिस उठा ले आई थाने में लाने के साथ एक बार फिर उन की बेरहमी से पिटाई की गई। थाने में पुलिस ने इन 15 लड़कों को इस तरह की गालियां और धमकियां दी "तुम्हारी कौम को खत्म कर दिया जाएगा" "BPL कार्ड को खत्म कर दिया जाएगा" "₹1 का अनाज खाते खाते मस्ती आ गई है" "तुम्हारी मां के साथ सोने के लिए पाकिस्तान के लोग आए थे"
यह भाषा सिर्फ पुलिस के सांप्रदायिक चरित्र को ही उजागर नहीं करती बल्कि कल्याणकारी राज्य से लाभान्वित होने वाले तबके के प्रति उसके अंदर व्याप्त नफरत को भी उजागर करती है। यह सारी नागरिक अधिकार भारतीय राज्य मे बमुश्किल और काफी जद्दोजहद के बाद इस देश की आम जनता को दिए थे अब वही चीजें देश के मध्यम वर्ग की आंख का कांटा बन चुकी है।
हिंदुस्तान के बटवारे के बाद से ही हिंदुत्व लगातार इस बात को प्रचारित और प्रसारित करता रहा है कि यहां के मुसलमानों की सहानुभूति और प्रतिबद्धता पाकिस्तान के साथ है। संघ परिवार उस रणनीति पर शुरू से काम कर रहा है कि अगर एक झूठ को सौ बार बोला जाए तो जनता उसे सच मान लेती हैं। इसी प्रयोग को उसने बड़ी चतुराई के साथ भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट मैच के दौरान इस्तेमाल किया है।
जिला बुरहानपुर गांव मोहाद के 15 लड़कों पर से राजद्रोह का मुकदमा हटाकर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का मुकदमा कायम कर दिया गया था कि इस घटना के गंभीर सियासी निहितार्थ है।
मध्य प्रदेश के गांव मोहद की घटना इस मायने में अलग है कि पहली बार खुद राज्य हिंदुत्व के इस तर्क को वैधता प्रदान कर रहा है कि देश के मुसलमानों की सहानुभूति पाकिस्तान के साथ है। ऐसी घटनााएं जाहिर करती है कि भारतीय राज्य के अंदर मुसलमानों को देशद्रोही बताने को लेकर कितना ज्यादा उतावलापन है। मोहद की घटना से पहले तक मुसलमानों को देशद्रोही कहने के लिए आतंकवाद के मामले में फसाया जाता था। लेकिन पहली बार राज्य के द्वारा क्रिकेट के बहाने मुसलमानों को देशद्रोही बताया जा रहा था और आज पुुलवामा हमले के बाद देश भर में कश्मीरी छात्रों को निशानाा बनाया जा रहा है।
निशाने पर कश्मीरी छात्र
23 फरवरी 2014 को भारत पाकिस्तान मैच के दौरान पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने के आरोप में मेरठ के स्वामी विवेकानंद सुभारती यूनिवर्सिटी के 67 कश्मीरी छात्रों को पहले सस्पेंड किया गया और फिर उन पर राजद्रोह का मुकदमा कायम किया गया बाद में सबूतों के अभाव में राजद्रोह का मुकदमा हटा लिया गया इन कश्मीरी लड़कों के कमरों में पत्थरबाजी की गई। घटना के कुछ समय बाद कई सारे लड़के कॉलेज छोड़ कर वापस कश्मीर लौट गए।
दूसरी घटना ग्रेटर नोएडा के शारदा यूनिवर्सिटी के 4 कश्मीरी लड़कों को हॉस्टल से निकाला गया था। भारत-पाकिस्तान मैच के दौरान हरियाणा में कई ऐसी घटनाएं हुई जब हिंदुत्ववादी गिरोह ने कश्मीरी छात्रों पर हमला किया है दरअसल हिंदुत्व के लिए कश्मीर के लोगों को पाकिस्तान के साथ जोड़ना बहुत मुश्किल नहीं है लेकिन पिछले कुछ सालों में हिंदुत्व ने अपनी इस रणनीति का विस्तार कश्मीर के इतर देश के दूसरे हिस्सों में भी किया है।
हिंदुत्व के इन साजिशों का पर्दाफाश भी हो चुका है। कर्नाटक के बीजापुर के पास श्री राम सेना के कुछ कार्यकर्ताओं को पुलिस ने पाकिस्तानी झंडा फहराने के जुर्म में पकड़ा था। पहले तो श्रीराम सेना के कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान का झंडा फहराया और घटना के अगले दिन आरोपितों की गिरफ्तारी न होने की चलते प्रशासन के खिलाफ धरना भी दिया। जब पुलिस ने इस घटना में संलिप्त श्री राम सेना के छह कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया तो श्री राम सेना के प्रमुख प्रमोद मुतालिक ने इस घटना में सेना के कार्यकर्ताओं की भूमिका से इंकार किया और कहा कि इस साजिश में आरएसएस के लोग शामिल हैं।
पुलिस की भाषा
मोहद गांव से पुलिस के द्वारा 15 मुस्लिम लड़कों को गिरफ्तार किया जाना पुलिस के द्वारा गांव में घुसकर मुसलमानों पर किया गया हमला था। पुलिस उन्हे उनके घर से घसीटते और मारते पीटते हुए थाने ले आई। कई सारे लड़कों को दाढ़ी और टोपी देखकर बिना उनका नाम पूछे ही पुलिस उठा ले आई थाने में लाने के साथ एक बार फिर उन की बेरहमी से पिटाई की गई। थाने में पुलिस ने इन 15 लड़कों को इस तरह की गालियां और धमकियां दी "तुम्हारी कौम को खत्म कर दिया जाएगा" "BPL कार्ड को खत्म कर दिया जाएगा" "₹1 का अनाज खाते खाते मस्ती आ गई है" "तुम्हारी मां के साथ सोने के लिए पाकिस्तान के लोग आए थे"
यह भाषा सिर्फ पुलिस के सांप्रदायिक चरित्र को ही उजागर नहीं करती बल्कि कल्याणकारी राज्य से लाभान्वित होने वाले तबके के प्रति उसके अंदर व्याप्त नफरत को भी उजागर करती है। यह सारी नागरिक अधिकार भारतीय राज्य मे बमुश्किल और काफी जद्दोजहद के बाद इस देश की आम जनता को दिए थे अब वही चीजें देश के मध्यम वर्ग की आंख का कांटा बन चुकी है।
पुलवामा हमले के बाद
पुलवामा हमले के बाद एक तरफ जहां पूरा देश एकजुटता का संदेश दे रहा है एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर चलने का ऐलान कर रहा है शहीद जवानों के परिवार को हौसला देने की कोशिश कर रहा है। इनके गम को हल्का करने में मदद कर रहा है। लेकिन एक विशेष वर्ग अपने फायदे के लिए देश के ताने-बाने बिखेरने में व्यस्त है।
हमें इस समय बंदूक, तलवार और जुबान के द्वारा नहीं लड़ना है। बल्कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तरह खाली हाथ बहुत समझदारी के साथ तूफान का मुकाबला करना है।
आखिर ये कैसे सम्भव है कि हम अपने ही नागरिकों को निशाना बनाकर, अपने ही लोगों को दुश्मन या गद्दार ठहरा कर, अमन की बात करने वाले पत्रकारों व अन्य लोगों को गाली गलौज देकर और जान से मारने की धमकियां देकर दुश्मन से मुकाबला कर सकते हैं?
सोशल मिडिया पर अमन चैन की बात करने वालों के खिलाफ अभद्र टिप्पणियां बताती हैं कि किस तरह देश के नवजवानों के दिमाग में नफरत का जहर घोला गया है। इस का अंजाम हमारा दुश्मन नही, बल्कि इस देश का नागरिक ही भुगत रहा है।
पुलवामा में देश के लिए अपना जीवन अर्पित करने वाले जवानों की शहादत को एक तरफ रख कर सत्ताधारी पार्टी अपनी राजनैतिक रोटियां सेंक रही है और इनके कार्यकर्ता अपने ही देश के लोगों पर हमलावर हैं। ये लोग आखिर इस देश को किस राह पर ले जाना चाहते है? इन्होंने अपनी आंखों पर पर्दा क्यों डाल लिया है? क्या इन्हें मुस्लिम इलाकों, मदरसों, मस्जिदों और मुस्लिम संगठनों की तरफ से बुलन्द होने वाली आवाजें सुनाई नही देती?
पुलवामा हमले के बाद के उर्दू के अखबार उठाकर क्यों नही देखते कि जिस वर्ग को वो शक की नजर से देख रहें हैं, इन्हें निशाना बनाने की कोशिश कर रहें हैं। वह वर्ग पुलवामा मामला, आतंकवाद और दुश्मनों के खिलाफ किस कदर गुस्से में हैं।
यहाँ उर्दू अखबार का नाम इसलिए लेना पड़ा क्योंकि देश भर के मदरसों, मस्जिदों और मुस्लिम संगठनों द्वारा आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ बुलन्द होने वाली आवाजें हिंदी और अंग्रेजी के अखबारों में बहुत कम दिखी। हाँ अगर कोई नाकारात्मक खबर हो तो ज़रूर इनकी हैडलाइन बन जाती है।