देवरिया के बरियारपुर मे सडक किनारे झाडी मे एक नवजात बच्ची मिली। बच्ची को देखने के लिए वहाँ भारी भीड इकट्ठा हो गई। लेकिन उस भीड मे बच्ची को अपनाने का साहस किसी मे नही था दूसरे शब्दो मे कहे तो पूरी भीड तमाशबीन थी। तभी गाँव के अरविन्द अपनी पत्नी के साथ भीड के करीब पहुचते हैं। और बच्ची देखते ही उनका दिल पसीज गया उन्होने बच्ची को न सिर्फ अपनाया बल्कि इलाज के लिए अरविन्द बच्ची को लेकर जिला अस्पताल पहुच गए। अरविन्द के पहले से दो बेटे पर उन्हे बेटी की कमी खल रही थी।
सदर कोतवाली क्षेत्र के बरियार पुर के रहने वाले अरविन्द राजभर का विवाह दस वर्ष पूर्व संगीता से हुआ था। वह हरेराम चौराहे पर दूसरे के दुकान मे वेल्डिंग का काम करते है। अरविन्द को दो बेटे है आशुतोष और आलोक पर उन्हे बेटी की कमी का एहसास हो रहा था। आज बरियारपुर सडक किनारे एक झाडी मे मिली नवजात बच्ची को अपनाने के बाद अरविन्द की यह कमी पूरी हो गई।
आसपास के लोगो ने बच्ची को झाडियों से बाहर निकाला और पुलिस को सूचना दी। जानकारी मिलते ही अरविन्द अपवी पत्नी संगीता के साथ वहाँ पहुच गए। दोनो ने बच्ची को अपनाने की बात कही। लोगो की सहमति के बाद ग्राम प्रधान ने बच्ची संगीता को दे दिया। दोनो पति पत्नी उसे लेकर जिला अस्पताल पहुचे और उसका इलाज कराया। अरविन्द का कहना है कि भगवान ने इसे मेरे बेटो को रक्षा बंधन के उपहार के ऱूप मे दिया है। बेटो की कलई अब खाली नही रहेगी।
सदर कोतवाली क्षेत्र के बरियार पुर के रहने वाले अरविन्द राजभर का विवाह दस वर्ष पूर्व संगीता से हुआ था। वह हरेराम चौराहे पर दूसरे के दुकान मे वेल्डिंग का काम करते है। अरविन्द को दो बेटे है आशुतोष और आलोक पर उन्हे बेटी की कमी का एहसास हो रहा था। आज बरियारपुर सडक किनारे एक झाडी मे मिली नवजात बच्ची को अपनाने के बाद अरविन्द की यह कमी पूरी हो गई।
आसपास के लोगो ने बच्ची को झाडियों से बाहर निकाला और पुलिस को सूचना दी। जानकारी मिलते ही अरविन्द अपवी पत्नी संगीता के साथ वहाँ पहुच गए। दोनो ने बच्ची को अपनाने की बात कही। लोगो की सहमति के बाद ग्राम प्रधान ने बच्ची संगीता को दे दिया। दोनो पति पत्नी उसे लेकर जिला अस्पताल पहुचे और उसका इलाज कराया। अरविन्द का कहना है कि भगवान ने इसे मेरे बेटो को रक्षा बंधन के उपहार के ऱूप मे दिया है। बेटो की कलई अब खाली नही रहेगी।