ज्ञापन में मांग किया गया कि 1857 के जंग-ए-आज़ादी के सर्वोच्च सम्राट बहादुर शाह ज़फर की अंतिम इच्छा के अनुसार उनके पार्थिव अवशेषों को सम्मान पूर्वक यंगून से लाकर दिल्ली में भव्य राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाये।
लाल किला पर बहादुर शाह ज़फर की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाये और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन का नाम बहादुर शाह ज़फर के नाम किया जाये। बहादुर शाह ज़फर के त्याग एवं बलिदान को पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाये।
जिससे आने वाली पीढ़ियां आज़ादी में उनके द्वारा दिये गये बलिदान को स्मरण कर सकें। ज्ञापन देते समय बदरे आलम ने कहा कि देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेई, डॉ मनमोहन सिंह, पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज सहित म्यांमार जाने वाला हर सरकारी प्रतिनिधिमंडल महान सेनानी बहादुर शाह जफर के मजार पर जाकर अपना श्रद्धा सुमन अवश्य अर्पित करता रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं म्यांमार यात्रा के दौरान ऐसे महान सेनानी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1943 में सेनानी बहादुरशाह ज़फ़र के मजार पर पहुंच करके पचास हजार रुपये वहां के सरकार को मजार की देखभाल के लिए दान किया था और मजार स्थल से ही दिल्ली चलो का नारा दिया था।
बदरे आलम ने 1857 के क्रांतिकारी बहादुर शाह जफर पर आधारित पुस्तक भी एसडीएम को भेंट की।
इस दौरान कांग्रेस पार्टी जिला अध्यक्ष काजी सुहेल अहमद कैलाश नाथ बाजपेयी, खल्कुल्लाह खान, फखरूल, अखलाक अहमद, दीपक यदुवंशी ,अतहर अलीम, राममिलन भारती, दीपक राजभर, श्यामलाल शर्मा, हरिराम यादव, अनिरूद्ध पाठक, मोहम्मद असलम, तुफैल अहमद, सनाउल्लाह, अकबर, मसरूूूर आलम, हाफ़िज़ एजाज अहमद, सबरे आलम, तारिक़ शानी आदि लोग मौजूद रहे।

