स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलाना अब्दुल कय्यूम का जन्म 20 जनवरी 1918ई. को ग्राम-दुधवानिया बुजुर्ग पोस्ट-बढनी जनपद सिद्धार्थनगर उत्तर प्रदेश मे एक प्रतिष्ठित परिवार मे हुआ था। उनके पूर्वज मझौली राज्य(देवरिया) के महाराजा बौद्धमल थे।बिसेन बटिका सन् 1887, लेखक खडक बहादुर मल बिसेन ने बौद्धमल का उल्लेख मझौली के 104वें राजा के रूप मे किया है, जिन्होने इस्लाम धर्म स्वीकार कर अपना नाम मोहम्मद सलीम रखा था।उन्ही के नाम से देवरिया में सलीमपुर कस्बा एंव रेलवे स्टेशन मौजूद है।
शिक्षा
मौलाना ने अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्राम सेवरा के प्राथमिक पाठशाला मे प्राप्त की, इन्होने भारत-नेपाल सीमा पर स्थित जामिया सराजुल उलूम से अरबी फारसी की शिक्षा ग्रहण की उसके बाद जामिया (मऊ) मे दाखिला लिया।जहाँ से अरबी फारसी की शुरूआती शिक्षा प्राप्त करने के बाद अरबी की उच्च शिक्षा के लिए देश विभाजन से पहलेे प्रसिद्ध संस्था "दारूल हदीस रहमानिया"देहली मे दाखिल हुए।1940 ई. में मौलाना साहब ने दारूल हदीस रहमानिया से फाजिल की डिग्री हासिल की। अपने विघार्थी जीवन मे मौलाना एक तेजस्वी छात्र के रूप मे प्रसिद्ध थे। मदरसा की मासिक मैगजीन नवम्बर (1938) एक रिपोर्ट प्रकाशित हुयी उसमे उनकी चर्चा बडे अंदाज मे की गई।
सेनानी के रूप मे
- जब महात्मा गाँधी जी ने "अंग्रेजो भारत छोडो का नारा दिया" तो मौलाना भी पूर्ण रूप से स्वतंत्रता आंदोलन मे शामिल हो गये। कांग्रेस द्वारा चलाये जा रहे आंदोलनो एंव कार्यक्रमों मे शामिल होने के कारण मौलाना साहब अंग्रेज सरकार की नजर मे आ गए और ब्रिटिश सरकार ने उनको उनके पैत्रिक गाँव से गिरफ्तार कर लिया और उनको बस्ती जेल मे रखा और फिर वही से गोरखपुर पुन: नैनी इलाहाबाद जेल मे दिनाँक 22.8.1942 ई. से दिनाँक 22.5.1943ई. तक रखा गया। मौलाना को नैनी जेल मे लाल बहादुर शास्त्री, फिरोज गाँधी,हजरत मौलाना हुसैन मदनी,असीरे मालटा,मुजफ्पर हुसैन,डाक्टर काटजू,पुरूषोत्तम दास टंडन,विशम्भर दयाल,पंडित कमला पति त्रिपाठी आदि देश के ख्याती प्राप्त राजनेताओं के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
- एक बार दो माह के लिए लखनऊ मे नजरबन्द रहे।स्वतंत्रता सेनानी श्री कृपा शंकर के कथनानुसार इलाहाबाद ले जाने के पहले गोरखपुर मे 24 घंटे तक एक छोटे कमरे मे कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को रखा गया,वह सजा दस वर्ष की सजा से कष्टपर्द थी।
राजनैतिक समबन्ध
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री स्व. श्रीमति इंदिरा गाँधी, स्व चौधरी चरण सिंह तक आपको व्यक्तिगत रूप से जानते थे उत्तर प्रदेश के कई मुख्यमंत्रियों से आपके निजी सम्बंध थे ।इतना व्यापक राजनैतिक सम्बन्ध होने के बाद आपने कभी कोई सत्ता का लाभ नही लिय
शिक्षा के क्षेत्र मे योगदान
स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ मौलाना साहब के शिक्षा के प्रसार मे विशेष जोर देकर बस्ती जिले मे ही सम्भ्रांत व्यक्तियों के सहयोग से बढनी मे सन् 1946 मे गाँधी आर्दश की नीव रखी, जिसको 1948ई. मे हाईस्कूल और बाद मे इंटर कालेज की मान्यता मिली और मौलाना कालेज के प्रबन्धक भी रहे अपने प्रबन्धकीय कार्यकाल मे मौलाना ने सोलह एकड जमीन खरीदकर शिक्षा संस्था को दिया। इस्लामी शिक्षा के लिए मौलाना साहब ने अकरहरा सिद्धार्थनगर में दरसगाह इस्लामिया नाम से संस्था कायम की जो आज भी चल रही है।जामिया सिराजुल उलूम (कृष्णानगर नेपाल) में आगे बढाने मे भरपूर सहयोग किया और स्वयं संस्था के 25 वर्षो तक अध्यछ रहे।अल्पसंख्यको में आधुनिक शिक्षा प्रसार के लिए मुस्लिम हायर सेकण्डरी स्कूल ग्राम महदेईया मे जो नौगड के निकट है,जिसे मौलाना साहब ने स्थापित किया था.जो आज जिले का प्रमुख मान्यता प्राप्त विघालय है।
विद्वान के रूप मे
मौलाना अब्दुल कयूम साहब इस्लामी शिक्षा के देश और विदेशों में भी कुरान और हदीस की आधिकारिक विद्वान के रूप में माने जाते थे यही कारण था कि मध्यपूर्व से न जाने कितने शिक्षा प्रेमी आपसे मिलने,देखने और शिक्षा लेने के लिए अत्यंत पिछड़े जनपद सिद्धार्थनगर के छोटे से गांव "दुधवनियां बुजुर्ग आया करते थे जीवन की हर सुख सुविधा भोगने वाले अरबों का अति पिछड़े जनपद सिद्धार्थनगर के एक गाँव की यात्रा कितना कष्टदायक होता रहा होगा इसका सही अनुमान लगाना हमारे आपके बसने नहीं,हम आप मात्र कल्पना कर सकते हैं. शेख मोहम्मद जियाद बिन उमर अत्तुकल्लाह मध्यपूर्व इस्लामी शिक्षा के विद्वान के रूप में जाने जाते हैं.मई 2005 में जब गर्मी चर्म सीमा पर पहुंच गई थी मौलाना के गांव "दुधवनिया बुजुर्ग" में रहकर एक माह तक आपकी सेवा किया तथा शिक्षा प्राप्त किया.खाड़ी देशों के इस्लामी शिक्षा में रूचि रखने वालों का अगर बस चलता तो मौलाना साहब को पूरा जीवन मध्यपुर में ही बिताना पड़ता.लाख अनुरोध के बाद भी वाह मातृभूमि छोड़कर और पैसों के लिए कहीं जाने की लिए राजी नहीं होते थे. अपने सबसे प्रिय शिष्य मोहम्मद जियाद अत्तकुल्लाह के विशेष अनुरोध पर एक बार कुवैत एक बार बहरैन दो बार सऊदी अरब की यात्रा पर गए.जहां पर उनका हार्दिक स्वागत किया गया.सऊदी अरब की यात्रा के समय जार्डन,लेबनान,मिस्र,बहरैन,कुवैत,अलजजायर,यमन,मोरक्को,सोमालिया,सूडान,उजबेकिस्तान,अफगानिस्तान और पाकिस्तान आदि देशो के सैकड़ों शोध छात्र छात्राओं व उच्च शिक्षण संस्थाओं के संचालको ने आपसे ज्ञान लाभ प्राप्त किया.मौलाना से शिक्षा लेने वालों में मदीना शरीफ के मस्जिद ए नबवी के इमाम शेख अली अब्दुल रहमान अल हुफैजी,मदीना विश्व विघालय के हदीस विभागध्यछ शेख मो.इब्राहिम,डा0 यहया जैसे लोग है
आज भी स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अब्दुल कय्यूम रहमानी का परिवार पिता के विरासत को सम्भाले हुए है उनके बडे बेटे बदरे आलम समाजसेवा के पथ पर चलकर लोगो की सहायता कर रहें है हर वर्ग की अवाज बुलन्द कर रहें हैं ।
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