बस्ती: नए सत्र में जहां एक तरफ पूरा बेसिक शिक्षा विभाग का पूरा तंत्र स्कूल चलो अभियान को अंजाम तक पहुंचाने में जुटा है वहीं बच्चों के अभिभावक ही अभियान की हवा निकाल रहे हैं। रबी फसल की कटाई में अभिभावक इतने व्यस्त हैं कि अपने साथ बच्चों को भी खेत तक ले जाते हैं। ऐसे में जिस समय बच्चों को स्कूल में रहना चाहिए उस समय वह हंसिया पकड़ फसल काट रहे होते हैं। इधर शिक्षक घर-घर व खेतों में जाकर बच्चों को स्कूल भेजने की मनुहार अभिभावकों से कर रहे हैं तो उनका सीधा जवाब होता है कि फसल कटने के बाद ही पढ़ने जाएगा। यही वजह है कि परिषदीय स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति का फीसद काफी कम हो गया है। 1 अप्रैल से शुरू हुआ शैक्षिक सत्र तीन सप्ताह बाद भी रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति काफी कम रह रही है। जहां सौ से डेढ़ सौ बच्चे पंजीकृत हैं वहां बमुश्किल 25 से 50 ही बच्चे पढ़ने आ रहे हैं। हालत यह है कि बच्चे भी टका सा जवाब दे रहे हैं गेहूं काटि लेई तबै पढ़ै आइब। शिक्षक यह जवाब सुन कर चुप हो जा रहे हैं। रजौली गांव के एक बच्चे के अभिभावक पूर्णमासी कहते हैं कि साल भर के लिए अनाज इसी सीजन में जुटाना रहता है। पूरे परिवार के साथ मेहनत करता हूं तभी काम चल पाता है। बच्चे यदि थोड़ी मदद नहीं करेंगे तो साल भर खाएंगे क्या। ऐसी ही बात कही ऐंठीडीह के मल्लू ने कहा कि साल भर खाने भर के लिए गेहूं पैदा करने लायक जमीन ही नहीं है। दूसरे के खेतों में मजदूरी करते हैं। बच्चे साथ में रहते हैं तो कुछ ज्यादा मजदूरी मिल जाती है। अभिभावक की भी अपनी मजबूरी है। उन्हें पढ़ाई से ज्यादा ¨चता साल भर के भोजन की रहती है। शिक्षक उनके भविष्य को लेकर परेशान तो रहते हैं पर करें क्या अभिभावक का जवाब सुनकर चुप रह जाते हैं। हर्रैया के खंड शिक्षा अधिकारी विजय कुमार ओझा का कहना है कि अध्यापक घर-घर जाकर बच्चों को विद्यालय लाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं लेकिन फसल कटाई के चलते बच्चे कम आ रहे हैं।