ग्राम पंचायतो (Gram Panchayat) की व्यवस्था भारत के लिए कोई नई व्यवस्था न होकर प्राचीन काल से चली आ रही व्यवस्था है। प्राचीन काल में 'पंचायत' शब्द का अर्थ ऐसे पांच व्यक्तियों का समिति से लिया जाता था जिन्हें 'पंच- परमेश्वर' (Panch Parmeshwar) माना जाता था और यह विश्वास किया जाता था की उनमें ईश्वर निवास करता है। उनके द्वारा दिए गए निर्णय को मान्यता प्राप्त होती थी। अर्थात इन पंचों का निर्णय सभी ग्रामवासियों को स्वीकार होता था।
प्राचीन काल में ये पंच गांव के अत्यंत सम्मानित व्यक्ति हुआ करते थे। यह लोकतंत्र का सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था थी जिसके द्वारा ग्रामीण जनता स्वयं ही अपनी समास्याओं का समाधान कर लेती थी। परंतु मुस्लिम शासन की स्थापना और ब्रिटिश शासन ने इस पंचायत व्यवस्था को समाप्त कर दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने पुन: इस व्यवस्था को अपनाया है और पंचायती राज योजना के अंतर्गत देश के गांवों में नए सिरे से ग्राम पंचायतो का गठन किया।
मेघालय, नागालैंड, और सिक्किम के अतिरिक्त अन्य सभी राज्यों में ग्राम पंचायते ग्रामीण स्वशासन की कार्यपालिका के रूप में ग्रामीण विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं।
ग्राम पंचायत स्थानीय स्वशासन की सबसे छोटी इकाई है । गांव में निवास करने वाले सभी स्त्री- पुरुष 'ग्राम सभा के सदस्य होते है। ग्राम सभा की कार्यकारिणी ग्राम पंचायत होती है। ग्राम पंचायत का संगठन निम्न प्रकार होता है।
ग्राम पंचायत में 9 से 15 तक सदस्य चुने जाते हैं। 1000 की जनसंख्या वाले गांव में एक ग्राम सभा बनती है। गांव के 18 साल से अधिक आयु के सभी व्यक्ति इसके सदस्य होते हैं। ग्राम सभा के सदस्य ही ग्राम पंचायत के सदस्यो का चुनाव करते हैं।
ग्राम पंचायत का सदस्य बनने के लिए व्यक्ति का आयु 21 वर्ष से अधिक होनी चाहिए। इनमे पिछड़े वर्ग तथा महिलाओं के लिए पद आरक्षित होते हैं। ग्राम सभा के सदस्य ग्राम प्रधान और उपप्रधान का चुनाव भी करते हैं। इन दोनो का कार्यकाल 5 वर्ष होता है।
ग्राम पंचायत की माह में कम से कम एक। बैठक अवश्य होनी चाहिए।