1.दिल से दी गयी शिक्षा समाज में क्रांति ला सकता है.
2.अगर आप अपने मिशन में सफलता हासिल करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको अपने लक्ष्य के प्रति पूरी तरह से समर्पित होना जरूरी है.
एसएन भारद्वाज
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद या अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन का जन्म 11 नवंबर ,1888 को मक्का में हुआ था। वह मौलाना आज़ाद के नाम से प्रख्यात थे। वे कवि, लेखक, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत की आजादी के बाद वे एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक पद पर रहे। वे महात्मा गांधी के सिद्धांतो का समर्थन करते थे। उन्होंने गाँधी जी के साथ अहिंसा का साथ देते हुए, सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलन में बढ़चढ़ के हिस्सा लिया था. मौलाना ने धार्मिक सद्भाव के लिए काम किया और देश विभाजन के कट्टर प्रतिद्वंद्वी भी थे. मौलाना आजाद ने लम्बे समय तक भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी, साथ ही भारत पाकिस्तान विभाजन के गवाह बने. लेकिन एक सच्चे भारतीय होने के कारण उन्होंने स्वतंत्रता के बाद भारत में रहकर इसके विकास में कार्य किया और पहले शिक्षा मंत्री बन, देश की शिक्षा पद्धति सुधारने का ज़िम्मा उठाया.
मौलाना आज़ाद कई भाषाओँ जैसे अरबिक, इंग्लिश, उर्दू, हिंदी, पर्शियन और बंगाली में निपुण थे। मौलाना आज़ाद किसी भी मुद्दे पर बहस करने में बहुत निपुण जो उनके नाम से ही ज्ञात होता है – अबुल कलाम का अर्थ है “बातचीत के भगवान”। उन्होंने धर्म के एक संकीर्ण दृष्टिकोण से मुक्ति पाने के लिए अपना उपनाम “आज़ाद” रख लिया। मौलाना आज़ाद स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री बने। राष्ट्र के प्रति उनके अमूल्य योगदान के लिए मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को मरणोपरांत 1992 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
जीवन
मौलाना आजाद अफ़गान उलमाओ के खानदान से ताल्लुक रखते थे जो बाबर के समय हेरात से भारत आए थे। उनकी मां अरबी मूल की थी और उनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन एक विद्वान थे जिन्होंने 12 किताबें लिखी थीं और उनके सैकड़ों शागिर्द (शिष्य) थे। कहा जाता है कि वे इमाम हुसैन के वंश से थे। उनकी मां का नाम शेख आलिया बिंते मोहम्मद था जो शेख मोहम्मद बिन जहर अलवत्र की बेटी थीं।
मोहम्मद खैरुद्दीन और उनके परिवार को स्वंत्रात के पहले आंदोलन 1857 के विद्रोह के समय कलकत्ता छोड़कर मक्का जाना पड़ा। जहाँ मौलाना आजाद का जन्म हुआ. मौलाना आजाद जब 2 वर्ष के थे, तब 1890 में उनका परिवार वापस भारत आ गया और कलकत्ता में बस गया.
मोहम्मद खैरुद्दीन को कलकत्ता में एक मुस्लिम विद्वान के रूप में ख्याति मिली। जब आज़ाद मात्र 11 साल के थे। तब उनकी माता का देहांत हो गया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा इस्लामी तौर तरीको से हुई। घर पर या मस्जिद में उन्हें उनके पिता तथा बाद में अन्य विद्वानो ने पढ़ाया। इस्लामी शिक्षा के अलावा उनके दर्शन शास्त्र, इतिहास, तथा गणित की भी शिक्षा अन्य गुरुओं से मिली। आजाद ने उर्दू, हिंदी ,अरबी, फारसी, तथा अंग्रेज़ी भाषाओ में महारथ हासिल की। 16 साल में उन्हें वो सभी शिक्षा मिल गई थी जो आम तौर पर 25 साल में मिला करती थी।
13 साल की आयु में उनका विवाह जुलैखा बेगम से हो गया। वे सलाफी (देवबंदी) विचारधारा के करीब थे और उन्होंने कुरान के अन्य भावरूपो पर लेख भी लिखे। मौलाना आज़ाद अधुनिक शिक्षावादी सर सैय्यद अहमद खां के विचारों से सहमत थे।
मौलाना आजाद ने खिलाफत आन्दोलन शुरू किया, जिसके द्वारा मुस्लिम समुदाय को जागृत करने का प्रयास किया गया। उन्होंने अब गाँधी जी के साथ हाथ मिलाकर, उनका सहयोग ‘असहयोग आन्दोलन’ में किया। जिसमें ब्रिटिश सरकार की हर चीज जैसे सरकारी स्कूल, सरकारी दफ्तर, कपड़े एवं अन्य समान का पूर्णतः बहिष्कार किया गया। 1940 में मौलाना आजाद को रामगढ़ सेशन से कांग्रेस का प्रेसिडेंट बनाया गया. वहां उन्होंने धार्मिक अलगाववाद की आलोचना और निंदा की, और साथ ही भारत की एकता के संरक्षण की बात कही। वे वहां 1945 तक रहे।
आज़ादी के बाद मौलाना आजाद
स्वंत्रत भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने। उन्होंने ग्यारह वर्षों तक राष्ट्र की शिक्षा नीति का मार्गदर्शन किया। मौलाना आजाद को ही 'भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान' अर्थात 'आई. आई. टी.' और ' विश्व विद्यालय अनुदान आयोग' की स्थापना का श्रेय है। उन्होने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की ।
1- संगीत नाटक अकादमी (1953)
2-साहित्य अकादमी (1954)
3-ललितकला अकादमी (1954)
केंद्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष होने पर सरकार से केंद्र और राज्य के अतिरिक्त विश्व विद्यालय में सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा , कन्याओ की शिक्षा, व्यवसायिक प्रशिक्षण, कृषि शिक्षा और तकनीकी, शिक्षा जैसे सुधारों की वकालत की। शिक्षा को लेकर मौलाना आजाद के महत्वपूर्ण योगदान के कारण ही हर वर्ष 11 नवंबर शिक्षा दिवस के रूप मे मनाया जाता है।
मौलाना आजाद की मृत्यु
22 फ़रवरी 1958 को स्ट्रोक के चलते, मौलाना आजाद जी की अचानक दिल्ली में मृत्यु हो गई।
भारत में शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाने की शुरुवात मौलाना आजाद जी ने ही की थी. उनको भारत देश में शिक्षा का संस्थापक कहें, तो ये गलत नहीं होगा।
2.अगर आप अपने मिशन में सफलता हासिल करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको अपने लक्ष्य के प्रति पूरी तरह से समर्पित होना जरूरी है.
एसएन भारद्वाज
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद या अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन का जन्म 11 नवंबर ,1888 को मक्का में हुआ था। वह मौलाना आज़ाद के नाम से प्रख्यात थे। वे कवि, लेखक, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत की आजादी के बाद वे एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक पद पर रहे। वे महात्मा गांधी के सिद्धांतो का समर्थन करते थे। उन्होंने गाँधी जी के साथ अहिंसा का साथ देते हुए, सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलन में बढ़चढ़ के हिस्सा लिया था. मौलाना ने धार्मिक सद्भाव के लिए काम किया और देश विभाजन के कट्टर प्रतिद्वंद्वी भी थे. मौलाना आजाद ने लम्बे समय तक भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी, साथ ही भारत पाकिस्तान विभाजन के गवाह बने. लेकिन एक सच्चे भारतीय होने के कारण उन्होंने स्वतंत्रता के बाद भारत में रहकर इसके विकास में कार्य किया और पहले शिक्षा मंत्री बन, देश की शिक्षा पद्धति सुधारने का ज़िम्मा उठाया.
मौलाना आज़ाद कई भाषाओँ जैसे अरबिक, इंग्लिश, उर्दू, हिंदी, पर्शियन और बंगाली में निपुण थे। मौलाना आज़ाद किसी भी मुद्दे पर बहस करने में बहुत निपुण जो उनके नाम से ही ज्ञात होता है – अबुल कलाम का अर्थ है “बातचीत के भगवान”। उन्होंने धर्म के एक संकीर्ण दृष्टिकोण से मुक्ति पाने के लिए अपना उपनाम “आज़ाद” रख लिया। मौलाना आज़ाद स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री बने। राष्ट्र के प्रति उनके अमूल्य योगदान के लिए मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को मरणोपरांत 1992 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
जीवन
मौलाना आजाद अफ़गान उलमाओ के खानदान से ताल्लुक रखते थे जो बाबर के समय हेरात से भारत आए थे। उनकी मां अरबी मूल की थी और उनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन एक विद्वान थे जिन्होंने 12 किताबें लिखी थीं और उनके सैकड़ों शागिर्द (शिष्य) थे। कहा जाता है कि वे इमाम हुसैन के वंश से थे। उनकी मां का नाम शेख आलिया बिंते मोहम्मद था जो शेख मोहम्मद बिन जहर अलवत्र की बेटी थीं।
मोहम्मद खैरुद्दीन और उनके परिवार को स्वंत्रात के पहले आंदोलन 1857 के विद्रोह के समय कलकत्ता छोड़कर मक्का जाना पड़ा। जहाँ मौलाना आजाद का जन्म हुआ. मौलाना आजाद जब 2 वर्ष के थे, तब 1890 में उनका परिवार वापस भारत आ गया और कलकत्ता में बस गया.
मोहम्मद खैरुद्दीन को कलकत्ता में एक मुस्लिम विद्वान के रूप में ख्याति मिली। जब आज़ाद मात्र 11 साल के थे। तब उनकी माता का देहांत हो गया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा इस्लामी तौर तरीको से हुई। घर पर या मस्जिद में उन्हें उनके पिता तथा बाद में अन्य विद्वानो ने पढ़ाया। इस्लामी शिक्षा के अलावा उनके दर्शन शास्त्र, इतिहास, तथा गणित की भी शिक्षा अन्य गुरुओं से मिली। आजाद ने उर्दू, हिंदी ,अरबी, फारसी, तथा अंग्रेज़ी भाषाओ में महारथ हासिल की। 16 साल में उन्हें वो सभी शिक्षा मिल गई थी जो आम तौर पर 25 साल में मिला करती थी।
13 साल की आयु में उनका विवाह जुलैखा बेगम से हो गया। वे सलाफी (देवबंदी) विचारधारा के करीब थे और उन्होंने कुरान के अन्य भावरूपो पर लेख भी लिखे। मौलाना आज़ाद अधुनिक शिक्षावादी सर सैय्यद अहमद खां के विचारों से सहमत थे।
मौलाना आजाद ने खिलाफत आन्दोलन शुरू किया, जिसके द्वारा मुस्लिम समुदाय को जागृत करने का प्रयास किया गया। उन्होंने अब गाँधी जी के साथ हाथ मिलाकर, उनका सहयोग ‘असहयोग आन्दोलन’ में किया। जिसमें ब्रिटिश सरकार की हर चीज जैसे सरकारी स्कूल, सरकारी दफ्तर, कपड़े एवं अन्य समान का पूर्णतः बहिष्कार किया गया। 1940 में मौलाना आजाद को रामगढ़ सेशन से कांग्रेस का प्रेसिडेंट बनाया गया. वहां उन्होंने धार्मिक अलगाववाद की आलोचना और निंदा की, और साथ ही भारत की एकता के संरक्षण की बात कही। वे वहां 1945 तक रहे।
आज़ादी के बाद मौलाना आजाद
स्वंत्रत भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने। उन्होंने ग्यारह वर्षों तक राष्ट्र की शिक्षा नीति का मार्गदर्शन किया। मौलाना आजाद को ही 'भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान' अर्थात 'आई. आई. टी.' और ' विश्व विद्यालय अनुदान आयोग' की स्थापना का श्रेय है। उन्होने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की ।
1- संगीत नाटक अकादमी (1953)
2-साहित्य अकादमी (1954)
3-ललितकला अकादमी (1954)
केंद्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष होने पर सरकार से केंद्र और राज्य के अतिरिक्त विश्व विद्यालय में सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा , कन्याओ की शिक्षा, व्यवसायिक प्रशिक्षण, कृषि शिक्षा और तकनीकी, शिक्षा जैसे सुधारों की वकालत की। शिक्षा को लेकर मौलाना आजाद के महत्वपूर्ण योगदान के कारण ही हर वर्ष 11 नवंबर शिक्षा दिवस के रूप मे मनाया जाता है।
मौलाना आजाद की मृत्यु
22 फ़रवरी 1958 को स्ट्रोक के चलते, मौलाना आजाद जी की अचानक दिल्ली में मृत्यु हो गई।
भारत में शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाने की शुरुवात मौलाना आजाद जी ने ही की थी. उनको भारत देश में शिक्षा का संस्थापक कहें, तो ये गलत नहीं होगा।